Download Brihaspati Vrat Katha | संम्पूर्ण गुरुवार व्रत कथा PDF में!

“संम्पूर्ण गुरुवार व्रत कथा”, PDF में डाउनलोड करें | आरती ब्रहस्पति देव की | Brihaspati Vrat Katha ( Guruvar ki Pooja );

Brihaspati Vrat Katha Estuti ko PDF me Download Kare, ( बृहस्पतिवार व्रत कथा पीडीऍफ़ ). “गुरुवार के दिन“, विष्णु भगवान की पूजा, स्वास्थ्य, धन और मनोकामना को पूरी करने के लिए बड़ी श्रद्धा से करते हैं! प्रसाद में गुड़ और चने की दाल चढ़ाई जाती है, पीले चन्दन भी चढ़ाई जाती है, बृहस्पति देव को पीले रंग बहुत पसंद है इसलिए श्रद्धालु पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करते हैं, और पूजा के बाद आरती गाते हैं और केले के वृक्ष में जल चढाते हैं!

>> इस आर्टिकल में आप आसानी से पीडीएफ में पूरी कथा डाउनलोड कर सकते हैं, और प्रिंटआउट निकालकर, विधीपूर्वक पूजा कर सकते हैं!

Download Brihaspati Vrat Katha in Hindi!

“श्री बृहस्पति देव की कथा”

प्राचीन समय की बात है, भारत में एक “राजा” राज्य करता था! वह बड़ा प्रतापी तथा दानी था! वह नित्यप्रति दिन मंदिर में भगवद दर्शन करने जाता था!
वह ब्राह्मण और गुरु की सेवा किया करता था! उसके द्वार से कभी कोई याचक, निराश होकर नहीं लौटता था! वह प्रत्येक गुरूवार को व्रत रखता एबं “पूजन” करता था!
गरीबों की सहायता करता था! परन्तु यह सब बातें, उसकी “रानी” को अच्छी नहीं लगती थी, वह न व्रत करती, और न किसी को एक पैसा भी दान में देती!
वह राजा से भी, दान-पुन्य करने से मना किया करती थी!

एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने वन को चले गये, घर पर रानी और दासी थी! उसी समय गुरु बृहस्पति भगवान, साधू का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा माँगने आए!
साधू ने रानी से भिक्षा माँगी, तो वो कहने लगी – हे साधू महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूँ, इस कार्य के लिए तो मेरे पतिदेव ही बहुत हैं!

अब “आप” ऐसी कृपा करें की सारा धन नष्ट हो जाये, तथा मैं आराम से रह सकूँ! साधू रूपी, बृहस्पति देव ने कहा – हे देवी! तुम बड़ी विचित्र हो! संतान और धन से कोई दुखी नहीं होता है, इसको सभी चाहते हैं और पापी भी, “पुत्र” और “धन” की इक्क्षा करता है!

पूरी कथा पढ़ें, पीडीऍफ़ में!

>> Download Brihaspati Vrat Katha Aarti

वृहस्पति भगवान् की आरती

जय वृहस्पति देवा, ॐ जय वृहस्पति देवा |
छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा ||

ॐ जय वृहस्पति देवा | जय वृहस्पति देवा ||

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ||
जगत्पिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ||

ॐ जय वृहस्पति देवा…

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता |
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ||

ॐ जय वृहस्पति देवा…

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े |
प्रभु प्रकटतब होकर, आकर दवार खड़े ||

ॐ जय वृहस्पति देवा…

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी |
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ||

ॐ जय वृहस्पति देवा…

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारी |
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ||

ॐ जय वृहस्पति देवा…

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे |
जेष्टानन्द बन्द, सो सो निश्चय पावे ||

ॐ जय वृहस्पति देवा…

विष्णु भगवान की जय | वृहस्पति देव की जय बोलो ||

Brihaspati Vrat Katha

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