खाटूश्यामजी ( सीकर ) मंदिर दर्शन का समय | History of Khatu Shyam ji Temple in Hindi | क्या है इस मंदिर का महाभारत काल से नाता?
History of Khatu Shyam ji Temple in Hindi, श्री खाटू-श्याम’ मंदिर का इतिहास, दर्शन करने के समय, मंदिर तक पहुँचने के लिए, उपयुक्त साधन क्या है? कलयुग में, क्यों है भक्तों में इतनी आस्था इस “खाटू बाले श्याम बाबा” पर? कौन है बर्बरीक, क्या मान्यता है इससे जुड़ी, जाने सबकुछ इस आर्टिकल में!
क्या है, Khatu Shyam Ji Temple Rajasthan का पता और Contact No.?
श्री खाटूश्यामजी मंदिर,कमिटी, खाटू, जयपुर, राजस्थान, इंडिया – 332602;
फ़ोन नंबर: +91-1576-231182
क्या है, Khatu Shyam ji Temple Timings Openings’ का?
सुबह 5 बजे से रात्रि 9 बजकर 30 मिनट तक रोज श्रद्धालु दर्शन लाभ लेते हैं!
Khatu Shyam Ji Temple Rajasthan Nearest Railway Station
श्री खाटू जी श्याम बाबा का मंदिर, turtules स्कूल के नजदीक, अशोक विहार, जगतपुर के पास है! मंदिर से उत्तर-पश्चिम में सिर्फ 1500 मीटर की दुरी पर GETOR JAGATPURA RAILWAY STATION है, और 2500 मीटर की दुरी पर जयपुर इंटरनेशनल एअरपोर्ट है, जहाँ पहुंचकर टेक्सी या अन्य वाहन से यहाँ आसानी से पहुंचा जा सकता है!
Sri Khatuji Baba Sikar Rajasthan Ka Live Location ( Map )
View Location of Sree Khatu Shyam Baba
Story of Khatu Shyam Ji Temple
राजस्थान के सीकर में स्थित, श्री खाटूश्यामजी मंदिर देश भर में उपलब्ध, प्रसिद्ध श्री कृष्ण मंदिर में’ से एक है! राजस्थान के सीकर जिले में स्थित, इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु रोज आते हैं, यहाँ आनेवाली भक्तों की मन्नतें श्याम बाबा पूर्ण करते हैं!
कलियुग में श्री कृष्ण के रूप में श्याम बाबा की पूजा होती है, “खाटूश्यामजी” महाभारत के भीम जी के पुत्र “घटोतकक्ष” और उनके पुत्र थे बर्बरीक, जिनके शक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने उन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था!
वनवास काल में जब पांडव, अपनी जान बचाने के लिए छुपकर जी रहे थे तब उनका सामना “हिडिम्बा” से हुआ था, हिडिम्बा से भीम को एक पुत्र हुआ जो महाभारत में घटोतकक्ष नाम से प्रसिद्द हैं इन्हीं के पुत्र “बर्बरीक” को भगवान श्री कृष्ण ने वरदान दी थी! इसके पीछे पौराणिक मान्यता है की, बर्बरीक बहुत ही शक्तिशाली थे और उन्होंने घोषणा कर रखी थी की, कौरव और पांडव के बिच होनेवाली कुरुक्षेत्र युद्ध में, वो हारनेवाले के साथ युद्ध करेंगे!
श्री-कृष्णा’ जानते थे, बर्बरीक का ये घोषणा कहीं पांडव के लिए भाड़ी नहीं पर जाये, उन्होंने बर्बरीक से दान में उनकी शीश मांग ली, बर्बरीक ने अपने शीश दान में भेट की, लेकिन उन्होंने श्री कृष्ण से, युद्ध का परिणाम अपनी आँखों से देखने की इक्क्षा प्रकट की, जिसे श्री कृष्ण ने स्वीकार की!
उनका सर ( HEAD ) को युद्ध वाले क्षेत्र में एक पहाड़ पर रखी गई जहाँ से उन्होंने पूरा युद्ध देखा, और युद्ध के परिणाम के लिए उन्होंने “श्रीकृष्ण” को श्रेय दी!
भगवान् कृष्ण’ उनके इस बलिदान से बहुत प्रसन्न थे, उन्होंने श्याम रूप में, कलियुग’ में पूजे जाने का वरदान दिया!
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